गर्मियाँ सिर पर हैं और फलों का राजा आम भी बाज़ार में दस्तक दे चुका है।
हर घरों में फलों के इस राजा का स्वाद बडे आनंद से लिया जाता है।
हिन्दुस्तान के अलग-अलग प्रांतों में अलग-अलग प्रकार के आम बिकने के लिए
बाजार में मिल जाते हैं। जहाँ एक तरफ कच्चे आम से अचार, मुरब्बे और अनेक
स्वादिष्ठ पेय पदार्थ बनाए जाते हैं, वहीं पके हुए आम भोजन के साथ बडे मजे
से चबाए जाते हैं।
पके आम का रस भोजन के दौरान एक परंपरा के तौर पर भी परोसा जाता है। आम के फलों के अलावा इसके सारें अंगों में अनेक औषधीय गुण विराजमान हैं, वास्तव में पूरा आम का पेड ही औषधीय गुणों का खजाना है। ना सिर्फ पके और कच्चे दोनों तरह के आम बल्कि आम के पेड के तमाम अंगों और गुठलियों को भी आदिवासी औषधि के तौर पर सदियों से अपनाते चले आ रहें हैं। चलिए आज जानते हैं आम से जुडे देसी आदिवासी हर्बल नुस्खों को, इन नुस्खों को आप जान जाएंगे तो आप भी कहेंगे "आम तो आम, गुठली के भी दाम"।
आम के संदर्भ में रोचक जानकारियों और परंपरागत हर्बल ज्ञान का जिक्र कर रहें हैं डॉ दीपक आचार्य (डायरेक्टर-अभुमका हर्बल प्रा. लि. अहमदाबाद)। डॉ. आचार्य पिछले 15 सालों से अधिक समय से भारत के सुदूर आदिवासी अंचलों जैसे पातालकोट (मध्यप्रदेश), डाँग (गुजरात) और अरावली (राजस्थान) से आदिवासियों के पारंपरिक ज्ञान को एकत्रित कर उन्हें आधुनिक विज्ञान की मदद से प्रमाणित करने का कार्य कर रहें हैं।
आम की गुठलियों के चूर्ण को दही के साथ मिलाकर देने से दस्त में तेजी से आराम मिलता है।
डाँग- गुजरात में दस्त और बदहजमी की हालत में अक्सर रोगी को यही देसी नुस्खा दिया जाता है। लू लगने पर भी इसी फार्मुले का इस्तमाल इन्हीं आदिवासियों द्वारा किया जाता है।
ताजे हरे आम के बीजों यानि गुठलियों को सुखा लिया जाए और कुचलकर चूर्ण तैयार किया जाए। इस चूर्ण में स्वादानुसार काला नमक और जीरा पाउडर मिलाया जाए और अपचन होने की दशा में रोगी को दिया जाए तो अतिशीघ्र आराम मिल जाता है।
आम की गुठलियों का चूर्ण, कमल के सूखे फूल, बीज और सूखी पत्तियों की समान मात्रा लेकर कुचल लिया जाए और अच्छी तरह से मिला लिया जाए और महिला को दिया जाए तो उसके गर्भधारण करने की गुंजाईश बढ जाती है। आदिवासी हर्बल जानकार संतान प्राप्ति के लिए हर्बल नुस्खों के तौर पर इसे अपनाने की सलाह देते हैं।
बच्चों के पेट में कृमि होने की दशा में आम की गुठलियों के चूर्ण और विडंग नामक जडी-बूटी की समान मात्रा मिलाकर रात सोने से पहले दिया जाए तो कृमि मृत होकर मल के साथ बाहर निकल आते हैं।
आम की गुठलियों के रस को नकसीर/ नाक से लगातार खून निकलते रहने की शिकायत में काफी कारगर माना जाता है।
आम की ताजा पत्तियों के रस को एसिडिटी नियंत्रण के लिए हर्बल जानकारों के द्वारा दिया जाता है। ताजा पत्तियों (लगभग 10 ग्राम) को 50 मिली पानी के साथ पीस लिया जाए और रोगी को पीनी के लिए दिया जाए तो तुरंत आराम मिलने लगता है।
डाँग- गुजरात के हर्बल जानकारों के अनुसार दिन में 3 बार इस रस की 2-2 बूंद मात्रा नाक में डाली जाए तो शीघ्र समस्या का निदान होने लगता है।
खाँसी होने पर पके आम को चुल्हे पर भून लिया जाए और ठंडा होने पर रोगी को खिलाया जाए तो खाँसी में जल्द आराम मिलता है।
कच्चे आम का पन्हा (आम रस) लू और गर्मियों के थपेडों से बचने का एक कारगर देसी फार्मुला है। कच्चे आम को पानी में उबाला जाता है और इसे मैश करके इसमें पुदिना रस, जीरा, काली मिर्च, चुटकी भर नमक और स्वादानुसार शक्कर मिलाकर रेफ़्रिजरेट किया जाता है। एक गिलास रस का सेवन करने से लू की समस्या में राहत मिल जाती है और ये पारंपरिक पेय स्वाद में भी अव्वल होता है।
पके हुए आम (लगभग 100ग्राम) को खाने के बाद एक गिलास ठंडा दूध पी लिया जाए तो नींद बेहतर आती है।
पके आम का रस भोजन के दौरान एक परंपरा के तौर पर भी परोसा जाता है। आम के फलों के अलावा इसके सारें अंगों में अनेक औषधीय गुण विराजमान हैं, वास्तव में पूरा आम का पेड ही औषधीय गुणों का खजाना है। ना सिर्फ पके और कच्चे दोनों तरह के आम बल्कि आम के पेड के तमाम अंगों और गुठलियों को भी आदिवासी औषधि के तौर पर सदियों से अपनाते चले आ रहें हैं। चलिए आज जानते हैं आम से जुडे देसी आदिवासी हर्बल नुस्खों को, इन नुस्खों को आप जान जाएंगे तो आप भी कहेंगे "आम तो आम, गुठली के भी दाम"।
आम के संदर्भ में रोचक जानकारियों और परंपरागत हर्बल ज्ञान का जिक्र कर रहें हैं डॉ दीपक आचार्य (डायरेक्टर-अभुमका हर्बल प्रा. लि. अहमदाबाद)। डॉ. आचार्य पिछले 15 सालों से अधिक समय से भारत के सुदूर आदिवासी अंचलों जैसे पातालकोट (मध्यप्रदेश), डाँग (गुजरात) और अरावली (राजस्थान) से आदिवासियों के पारंपरिक ज्ञान को एकत्रित कर उन्हें आधुनिक विज्ञान की मदद से प्रमाणित करने का कार्य कर रहें हैं।
आम की गुठलियों के चूर्ण को दही के साथ मिलाकर देने से दस्त में तेजी से आराम मिलता है।
डाँग- गुजरात में दस्त और बदहजमी की हालत में अक्सर रोगी को यही देसी नुस्खा दिया जाता है। लू लगने पर भी इसी फार्मुले का इस्तमाल इन्हीं आदिवासियों द्वारा किया जाता है।
ताजे हरे आम के बीजों यानि गुठलियों को सुखा लिया जाए और कुचलकर चूर्ण तैयार किया जाए। इस चूर्ण में स्वादानुसार काला नमक और जीरा पाउडर मिलाया जाए और अपचन होने की दशा में रोगी को दिया जाए तो अतिशीघ्र आराम मिल जाता है।
आम की गुठलियों का चूर्ण, कमल के सूखे फूल, बीज और सूखी पत्तियों की समान मात्रा लेकर कुचल लिया जाए और अच्छी तरह से मिला लिया जाए और महिला को दिया जाए तो उसके गर्भधारण करने की गुंजाईश बढ जाती है। आदिवासी हर्बल जानकार संतान प्राप्ति के लिए हर्बल नुस्खों के तौर पर इसे अपनाने की सलाह देते हैं।
बच्चों के पेट में कृमि होने की दशा में आम की गुठलियों के चूर्ण और विडंग नामक जडी-बूटी की समान मात्रा मिलाकर रात सोने से पहले दिया जाए तो कृमि मृत होकर मल के साथ बाहर निकल आते हैं।
आम की गुठलियों के रस को नकसीर/ नाक से लगातार खून निकलते रहने की शिकायत में काफी कारगर माना जाता है।
आम की ताजा पत्तियों के रस को एसिडिटी नियंत्रण के लिए हर्बल जानकारों के द्वारा दिया जाता है। ताजा पत्तियों (लगभग 10 ग्राम) को 50 मिली पानी के साथ पीस लिया जाए और रोगी को पीनी के लिए दिया जाए तो तुरंत आराम मिलने लगता है।
डाँग- गुजरात के हर्बल जानकारों के अनुसार दिन में 3 बार इस रस की 2-2 बूंद मात्रा नाक में डाली जाए तो शीघ्र समस्या का निदान होने लगता है।
खाँसी होने पर पके आम को चुल्हे पर भून लिया जाए और ठंडा होने पर रोगी को खिलाया जाए तो खाँसी में जल्द आराम मिलता है।
कच्चे आम का पन्हा (आम रस) लू और गर्मियों के थपेडों से बचने का एक कारगर देसी फार्मुला है। कच्चे आम को पानी में उबाला जाता है और इसे मैश करके इसमें पुदिना रस, जीरा, काली मिर्च, चुटकी भर नमक और स्वादानुसार शक्कर मिलाकर रेफ़्रिजरेट किया जाता है। एक गिलास रस का सेवन करने से लू की समस्या में राहत मिल जाती है और ये पारंपरिक पेय स्वाद में भी अव्वल होता है।
पके हुए आम (लगभग 100ग्राम) को खाने के बाद एक गिलास ठंडा दूध पी लिया जाए तो नींद बेहतर आती है।